Baba sahib kon thee janiye
बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन सामाजिक विकास की बजाय सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन का अधिक था,जानिए कैसे ?
अधिकतर लोगों को तो यह भी मालूम नहीं है कि बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन सामाजिक विकास की बजाय सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन करना अधिक था या नहीं ।
इस बात को पढ़कर बहुत से लोग असमंजस की स्थिति में आ सकते हैं कि आखिर सामाजिक विकास और सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन में अंतर क्या है।
इसके लिए कुछ उदाहरण पेश किए जा रहे हैं समझने का प्रयास करें।
बाबा साहेब अंबेडकर,BA,MA,MSC,DSC, LLD,DOUBLE Phd, BAR AT LAW जैसी अनेकों डिग्री लेकर दुनिया के सबसे बड़े विद्वान थे क्या आप ऐसी शख्सियत को विकास किया हुआ नहीं मानेंगे,लेकिन सामाजिक व्यवस्था के कारण उन्हें कुते बिल्ली से भी अधिक नीच और अछूत समझा गया, महाड़ के चावदार तालाब में कुते बिल्ली पानी पीते थे लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर के पानी पी लेने पर उस तालाब में गाय का गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी का मिश्रण(पंच गव्य) डालकर शुद्ध किया गया था।
भारत का उप प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री रहा हुआ व्यक्ति क्या विकास किया हुआ नहीं था लेकिन सामाजिक व्यवस्था के चलते बाबू जगजीवनराम जी को नीच और अछूत समझा गया, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति का अनावरण तो बजट ऐंठने के लालच में उनके कर कमलों द्वारा करवा लिया गया लेकिन जाने के बाद पीछे से उस मूर्ति को दूध से नहालकर एवं गो मूत्र छिड़क कर शुद्ध किया गया।
कांग्रेस की नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा ने क्या विकास नहीं कर रखा है लेकिन गुजरात के द्वारिका मन्दिर के पुजारी को पता चला कि मंत्री महोदया SC समाज की हैं तो उन्हें नीच और अछूत मानकर मन्दिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया।
कांग्रेस सांसद एवं रिटायर्ड आईएएस अधिकारी तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष महोदय ने क्या विकास नहीं किया था, लेकिन सामाजिक व्यवस्था के चलते पी एल पुनिया जी को भी नीच और अछूत समझकर उड़ीसा के एक मन्दिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया।
वर्तमान महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का ही ले लीजिए क्या उन्होंने विकास नहीं किया है परंतु सामाजिक व्यवस्था के कारण 18 मार्च 2018 को उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने उन्हें नीच और अछूत मानकर मन्दिर के गर्भगृह में जाने से रोक दिया तथा पंडितों ने राष्ट्रपति जी पत्नी श्रीमती सविता कोविंद के साथ धक्का मुक्की एवं बदसलूकी की।
बाबा साहेब अंबेडकर इस प्रकार की व्यवस्था को बिलकुल भी बर्दाश्त नही करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपना मिशन इस सामाजिक व्यवस्था को परिवर्तन करने का रखा अर्थात उनका मिशन जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना करने का था।लेकिन शोषित समाज के लोग अभी तक भी बाबा साहेब के मिशन को ठीक से समझ नहीं पाये हैं जिसका नतीजा रोजाना अखबारों में आप पढ़ ही रहे हैं।
सीनियर आईएएस उमराव सिंह जी सलोदिया और हाई कोर्ट के जज सी एस कर्णनन के साथ जो हुआ वो भी आप सभी ने जरूर सुना होगा।
इतने बड़े स्तर पर भी जातीय भेदभाव हो सकता है तो सबसे नीचे स्तर वालों का तो बुरा हाल होना निश्चित है।
विकास स्थायी नहीं रहता है लेकिन भारत में ये सामाजिक जातीय व्यवस्था सैंकड़ों वर्षों से स्थायी बनी हुई है, बाबा साहेब अंबेडकर की सोच थी कि अपमान भरे 100 वर्ष के जीवन जीने से सम्मान के 2 दिन की जिंदगी जीना बेहतर है लेकिन जब तक आप इनकी बनाई गई जातियों का हिस्सा बने रहोगे तब तक आप नीच और अछूत माने जाते रहोगे।
बाबा साहेब का कहना था कि हम आदमी हैं और आदमी को सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया, जब प्रकृति भेदभाव नहीं करती है तो फिर जाति के आधार पर आदमी को नीच और अछूत कैसे बनाया जा सकता है।
बाबा साहेब अंबेडकर ने भारत के संविधान में सभी मनुष्यों को बराबरी का दर्जा देने का क्रांतिकारी कानून बना दिया था,लेकिन उसके बाउजूद भी वही पुरानी व्यवस्था अभी भी लागू है कारण की कानून को लागू ही नहीं किया जाता है।
बाबा साहेब अंबेडकर भलीभाँति जानते थे कि कानून के बल पर सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आना मुश्किल है इसलिए उन्होंने आह्वान किया था कि ऐसे धर्म को छोड़ दो जिसमें तुम्हें कुते बिल्ली से भी नीचा समझा जाता हो।
अब आप समझ गये होंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन सामाजिक विकास की बजाय सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन का अधिक था।
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